सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब….
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
शौक तो माँ-बाप के पैसो से पूरे होते थे।
अपने पैसो से तो अब बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं..